अब जान कर भी कहाँ जान पाते हैं लोग?
हर मोड़ पर नए रूप में नज़र आते हैं लोग.
थामा जो तूने हाथ तो दिल को संबल मिला.
पर तूफ़ान में हाथ छोड़ दिया कैसा दिया सिला?
सोचा था कदम बहके तो थाम लोगे तुम.
पर हमसे पहले ही तुम बहकने क्यों लगे?
तुमसे था अपने होने का गुरुर हमको
बहुत बढ़िया ग़ज़ल... प्रेम और रिश्तों को बीच में रख कर लिखी गई ग़ज़ल अच्छी बन गई है..
ReplyDeleteसोचा था कदम बहके तो थाम लोगे तुम.
ReplyDeleteपर हमसे पहले ही तुम बहकने क्यों लगे?
ab kispe bharosa karen hum
ग़ज़ल अच्छी लिखी गई है..
ReplyDeleteतुमसे था अपने होने का गुरुर हमको
ReplyDeleteएतबार यूँ टूटा खुद पे भरोसा कैसे करें?
उम्दा गज़ल ओर एक से बढकर एक शेर. बहुत बहुत बधाई.
तुमसे था अपने होने का गुरुर हमको
ReplyDeleteएतबार यूँ टूटा खुद पे भरोसा कैसे करें?
बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में ... ।
kavita ji
ReplyDeletebahut hi lazwaab gazal
sach jab kisi par pura bharosa ho aur vahi dil tod de to iska dard jiska dil tuta ho vahi bakhoobi samajh sakta hai.
bahut hi badhiya prastuti ke liye hardik badhai
poonam
Ek khubsoorat gazal...
ReplyDeleteसोचा था कदम बहके तो थाम लोगे तुम.
ReplyDeleteपर हमसे पहले ही तुम बहकने क्यों लगे?
तुमसे था अपने होने का गुरुर हमको
एतबार यूँ टूटा खुद पे भरोसा कैसे करें?
सुन्दर कविता..हकीकत को दर्शाया है आपने!
आज गुड फ्राई डे के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं आपको !!
Pyari,mahkti hui gajal...
ReplyDeletedil ko chhu leti hai ye gajal... ek ek labjh me dard mahsus hota hai.
ReplyDeletedil ko chhu leti hai ye gajal... ek ek labjh me dard mahsus hota hai.
ReplyDeletedil ko chhu leti hai ye gajal... ek ek labjh me dard mahsus hota hai.
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