समझा जो होता
मेरी विवशता और
उलझनों को
जाना जो होता
मेरी सीमा और
बंधनों को
थमा जो होता
मेरी ख्वाहिशों और
अरमानों को
पाया जो होता
मेरे मन की
गहराइयों को
सोचा जो होता
मेरी धडकनों और
सांसों को
महसूस जो होता
मेरे प्यार और
भावनाओं को
यूं चले न जाते
इक पुकार के इंतजार में
पलटकर देखते तो पाते
ठिठके पड़े शब्द
विवशताओं के उलझे धागे में फंसे।
गहराइयों को
सोचा जो होता
मेरी धडकनों और
सांसों को
महसूस जो होता
मेरे प्यार और
भावनाओं को
यूं चले न जाते
इक पुकार के इंतजार में
पलटकर देखते तो पाते
ठिठके पड़े शब्द
विवशताओं के उलझे धागे में फंसे।
behtreen...
ReplyDeleteपलटकर देखते तो पाते
ReplyDeleteठिठके पड़े शब्द
विवशताओं के उलझे धागे में फंसे
......bilkul sahi kaha hai ji
बस समझने भर की देरी थी..
ReplyDeleteऔर सब कुछ छुट गया.....
बेहद भावपूर्ण रचना....
हज़ार राहें मुड के देखीं...
ReplyDeleteकहीं से कोई सदा न आई...
उलझन में उलझे शब्दों का बयान स्पष्ट है...खुबसूरत रचना।।।
आपकी ये कविता फेसबुक पर एक बार पढ़ चुका हूं, लेकिन कुछ रचनाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें जब भी पढिए लगता है पहली बार पढ़ रहा हूं। ये रचना उनमें से एक है।
ReplyDeleteबहुत बढिया
भाव प्रधान रचना ...
ReplyDeleteयूं चले न जाते
ReplyDeleteइक पुकार के इंतजार में
पलटकर देखते तो पाते
ठिठके पड़े शब्द
विवशताओं के उलझे धागे में फंसे।
निःशब्द करते भाव
उत्कृष्ट भावपूर्ण रचना,,,,,RECENT POST : ऐ माता तेरे बेटे हम
ReplyDeleteऐसी समझ हर बंधन में ज़रूरी है.. बढ़िया!
ReplyDeleteआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 31/10/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeletesaral evam sunder abhivyakti |
ReplyDelete